WORLD BREASTFEEDING WEEK 2018 – शिशु के लिए स्तनपान जरुरी है, दूर कीजिये स्तनपान से जुडी भ्रांतिया

Infolism Desk
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breast-feeding baby
स्तनपान के गुण से हम सभी वाकिफ हैं ब्रेस्ट मिल्क शिशु के शारीरिक व मानसिक विकास के लिए जरूरी है। यह नवजात को विभिन्न बीमारियों से बचाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। जो मां को इस बात को लेकर परेशान रहती है कि उसे दूध नहीं बनता, उसके लिए केवल उनका प्रयास और थोड़ी-सी जागरूकता जरूरी है।
डाॅ शैली बत्रा, वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ, बत्रा  , नयी दिल्ली
विश्व स्वास्थ्य संगठन भी नवजात को कम-से-कम 6 माह तक सिर्फ ब्रेस्टफीडिंग कराने की सिफारिश करता है। इसे दो साल या उससे अधिक तक भी जारी रखा जा सकता है। ब्रेस्टफीडिंग के फायदों के प्रति लोगों को जागरूक करने और उनके मन से भ्रांतियों को दूर करने के लिए WHO और यूनिसेफ भी हर साल विश्व स्तनपान सप्ताह मनाता है। इस दौरान पूरे विश्व में कई प्रकार के कार्यक्रम और स्वास्थ्य शिविर भी आयोजित किये जाते हैं। इस बार WHO ने इसका थीम रखा है- Breastfeeding: Foundation of Life यानी स्तनपान जीवन की नींव है।
ब्रेस्ट मिल्क है संपूर्ण आहार :
मां के शरीर में ब्रेस्ट मिल्क बनना एक प्राकृतिक क्रिया है, जो डिलिवरी के बाद शुरू हो जाती है। जन्म के तुरंत बाद आनेवाला गाढ़ा पीला दूध कम मात्रा में होता है, जिसे ‘कोलस्ट्रम’ कहा जाता है। नवजात को यह दूध प्रसव के पहले घंटे के अंदर ही पिलाना चाहिए। ऐसा करने से उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता आजीवन ठीक रहती है। सी-सेक्शन से डिलिवरी होने पर भी जितनी जल्दी हो, नवजात को पहला स्तनपान कराना चाहिए। कोलस्ट्रम वाला दूध 48 घंटे तक आता है। इसमें अनेक जीवन रक्षक तत्व होते हैं, जो नवजात के इम्यून सिस्टम को 90 फीसदी तक मजबूत बनाते हैं और कई संक्रामक रोगों से बचाते हैं। डिलिवरी के बाद पहले 48 घंटों में नवजात को 5-15 एमएल प्रति फीड की जरूरत होती है। शिशु की भूख और डिमांड के आधार पर ब्रेस्टमिल्क पतला और अधिक मात्रा में बनने लगता है। यह दूध शुरुआती 6 माह तक उसके लिए संपूर्ण आहार होता हैै। 6 माह के बाद भले ही शिशु को फाॅर्मूला मिल्क व अर्द्ध-ठोस आहार दें, पर स्तनपान मांएं दो साल या उससे अधिक दिनों तक करा सकती हैं।
फीडिंग की आदतों पर निर्भर है दूध का बनना :
ब्रेस्टफीडिंग की प्रक्रिया बच्चे के जन्म लेने के साथ ही शुरू हो जाती है। 95 फीसदी महिलाएं पहले दिन ही स्तनपान कराने में सक्षम होती हैं। ऐसा संभव ही नहीं है कि दूध बने ही न, मां की ब्रेस्ट में दूध डिलिवरी से पहले ही बनने लगता है। दूध पीने के लिए शिशु जब ब्रेस्ट को मुंह लगाता है या निप्पल को चूसता है, तो ब्रेस्ट स्टीमुलेट हो जाता है और दूध का फ्लो शुरू जाता है।दूध का फ्लो 3-4 दिन तक थोड़ा कम होता है, लेकिन सही तरीके से पिलाने से नवजात के लिए काफी होता है। शिशु की जरूरत और पीने की आदतों के हिसाब से दूध का फ्लो भी बढ़ने लगता है।
क्या होती है सही मात्रा :
शिशु को मां का दूध पर्याप्त मात्रा में मिल रहा है या नही, इसके लिए यह देखना जरूरी है कि जन्म के चौथे दिन बच्चा यदि 6-8 बार आराम से यूरिन करे और दिन में 2 बार मल त्याग करे, स्तनपान के बाद सो जाये और उसका वजन ठीक अनुपात में बढ़ रहा हो, तो समझिए दूध सही मात्रा में निकल रहा है।
लैक्टेशन फेल्योर :
कई नयी मांएं यह शिकायत करती हैं कि उनको पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं आता। इसलिए उनका बच्चा भूखा रह जाता है और उन्हें मजबूरन बाहर का दूध देना पड़ता है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। इससे ब्रेस्ट से दूध की सप्लाइ कम हो जाती है। ध्यान न देने से दूध बनना बंद हो जाता है। इसे ‘लैक्टेशन फेल्योर’ कहते हैं। ऐसे में शिशु मां के दूध से वंचित रह जाता है और उसे जन्म से ही फाॅर्मूला मिल्क या गाय के दूध पर निर्भर रहना पड़ता है। इसका असर उसके शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है।
लैक्टेशन फेल्योर के कारण :
  •  समय पर मां का दूध न पिलाने से नवजात लैक्टेशन फेल्योर की स्थिति आ सकती है। कई बार सामाजिक मिथकों के कारण भी नवजात को मां से दूर रखा जाता है या देर से फीडिंग कराया जाता है। ऐसे में बच्चा ब्रेस्टफीड का प्रयास कम करता है और ब्रेस्ट स्टीमुलेट नहीं हो पाता है।
  • सिजेरियन डिलिवरी के दौरान अधिक ब्लीडिंग होने से मां को आइसीयू में रहना पड़ता है या प्री-मेच्योर बेबी होने पर शिशु को इंक्यूबेटर में रखा जाता है, जिससे समय पर स्टीमुलेशन नहीं हो पाता है।
  • कई लोग डिलिवरी के बाद कम मात्रा में बननेवाले गाढ़े पीले कोलस्ट्रम दूध को नजरअंदाज करते हैं और नवजात के लिए हानिकारक मानते हैं। उसके बदले नवजात को बोतल या चम्मच से फाॅर्मूलेटेड दूध या गाय का दूध देते हैं। इससे बच्चे की भूख खत्म हो जाती है और वह मां का दूध नहीं ले पाता।
  • कई परिवारों में नवजात को मां के दूध से पहले शहद या मिश्री घुले पानी चटाने का चलन है। इससे भी शिशु की भूख कम हो जाती है।
  • टांकों में दर्द होने की वजह से मां में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है। वह ब्रेस्ट फीड नहीं करा पाती। कोशिश करें कि शिशु से जुड़े दूसरे काम परिवार वाले करें। ताकि बच्चे को फीड कराने में मां को दिक्कत कम हो।
  • ब्रेस्ट में चोट लगने, क्रैक्स पड़ने, सूजन होने या सर्जरी से भी लैक्टेशन फेल्योर हो सकता है. इससे निप्पल व दूध सप्लाइ करने वाले वेंस को नुकसान पहुंचता है. यदि ऐसी कोई समस्या हो, तो डॉक्टर से सलाह लें।
  • फ्लैट निप्पल या निप्पल रिट्रेक्शन की वजह से काॅन्फिडेंस की कमी के कारण भी मां दूध नहीं पिला पाती है।
  • यदि शिशु के तालू में छेद हो, तो दूध नाक में चला जाता है और उसे सांस लेने में भी समस्या हो, तो वह ब्रेस्ट से दूध पीना छोड़ देता है। ऐसे में मां ब्रेस्ट पंप की मदद से बच्चे को फीड करा सकती हैं।
  • गर्भवती महिला की पिट्यूटरी ग्लैंड में मौजूद हार्मोन में गड़बड़ी से भी लैक्टेशन फेल्योर हो सकता है। ब्रेन में मौजूद पिट्यूटरी ग्लैंड में प्रोलैक्टिन हाॅर्मोन दूध बनाने और आॅक्सीटोसिन हाॅर्मोन दूध निकालने में मदद करते हैं। इन हाॅर्मोंस में असंतुलन होने पर दूध की मात्रा कम हो सकती है।
  • कुछ महिलाएं तनाव, फिगर काॅन्सस होने की वजह से फीड नहीं कराती हैं। ठीक से फीड न कराने से दूध बनना कम हो जाता है। ऐसी मांओं की काउंसेलिंग जरूरी है।
  • मां अगर कैंसर, हार्ट, किडनी, हाइपो-थाॅयराइड जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है और दवा ले रही है, तो ब्रेस्ट मिल्क की मात्रा प्रभावित हो सकती है। ऐसे में डाॅक्टर भी ब्रेस्टफीडिंग के लिए मना करते हैं पर, ऐसे मामले 0.01 फीसदी ही होते हैं।
  • गर्भनिरोधक पैच, गोलियां या इन्जेक्शन से ब्रेस्ट मिल्क बनना कम हो सकता है. खासकर शिशु जब 4 माह से कम का हो। इन गर्भनिरोधकों में एस्ट्रोजन हाॅर्मोन की अधिकता होती है, जिससे दूध बनने की क्षमता कम हो जाती है।
  • कई बार घर के बड़े-बुजुर्ग डिलिवरी के बाद मां को पानी पीने को कम देते हैं। इसके पीछे धारणा होती है कि पानी पीने से मां का पेट फूल जाता है, पर ऐसा कुछ होता नहीं है। ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली मां पानी अधिक मात्रा में पीनी चाहिए, ताकि दूध बनने में मदद मिले और डिहाइड्रेशन भी न हो।
  • प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक भोजन की कमी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इसका असर प्रसव के बाद दूध बनने पर पड़ता है तथा मां कुपोषण का शिकार भी हो सकती है।
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