नोट बंदी के फैसले के बाद भारत सरकार बेनामी संपत्ति मामले में कड़ा रूख अख्तियार करने जा रही है। काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम में बेनामी लेनदेन की जाँच की जाएगी। खबरों के अनुसार सरकार ने फिलहाल 200 टीमों का गठन किया है जो देशभर में बेनामी संपत्तियों की जांच करेंगी। इनमें खासतौर पर कमर्शियल प्लॉट्स, हाईवे के किनारे की जमीने और औद्योगिक जमीनें शामिल हैं। सरकार के इस फैसले से काला धन से बेनामी संपत्ति बनाने वालों में खलबली मची है।
ऐसे में आम लोगो के जहन में कई सवाल आ रहें हैं बेनामी संपत्ति आखिर होती क्या है?
आईये, बेनामी संपत्ति से जुड़े कानून को समझते हैं।
इस ट्रांजैक्शन में जो आदमी पैसा देता है वो अपने नाम से प्रॉपर्टी नहीं करवाता है। जिसके नाम पर ये प्रॉपर्टी खरीदी जाती है उसे बेनामदार कहा जाता है। इस तरह से खरीदी गई प्रॉपर्टी को बेनामी प्रॉपर्टी कहा जाता है। इसमें जो व्यक्ति पैसे देता है घर का मालिक वही होता है। ये प्रॉपर्टी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों तरीकों से पैसे देने वाले का फायदा करती है। भारत में बहुत से लोग ऐसे हैं, जिनके धन का कोई हिसाब-किताब नहीं है और वे आयकर भी नहीं चुकाते, वे अमूमन बेनामी संपत्तियों में धन लगाते हैं।
बेनामी लेनदेन कानून
1988 के पहले यह स्थिति थी कि इस बेनामी संपत्ति का वास्तविक स्वामी वही व्यक्ति माना जाता था, जिस ने उस संपत्ति को खरीदने के लिए धनराशि चुकाई हो। लेकिन संपत्ति जिस के नाम दस्तावेजों या रिकार्ड में होती थी वह उसे दस्तावेजों के सहारे से किसी को बेच देता या दान, हस्तांतरण आदि कुछ कर देता तो बाद में इस तरह के विवाद अदालतों में आते थे कि वह संपत्ति तो बेनामी थी और वास्तविक स्वामित्व किसी और का था। इस से निरर्थक विवाद बहुत होते थे।
बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम 1988 में पहली बार लाया गया था। इनमे कई कमियां थी इसी को ध्यान में रखकर यूपीए -2 सरकार ने संसद में बिल पेश किया था लेकिन 15 वीं लोकसभा के भंग होने के कारण अधिनियम पारित नहीं हो सका था।
2015 में मौजूदा राजग सरकार ने संशोधित बेनामी लेनदेन विधेयक को संसद में पेश किया। बीते अगस्त में संसद ने इस अधिनियम में संशोधन को मंजूरी दे दी थी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस संशोधन को हरी झंडी दे दी।
बेनामी लेनदेन विधेयक 2015
बेनामी लेनदेन के रूप में में शामिल नहीं हैं:
- पत्नी, बच्चों, माता-पिता के नाम खरीदी गई संपत्ति और आय के घोषित स्रोत के जरिये चुकाई गई रकम बेनामी संपत्ति के दायरे में नहीं आती।
- भाई, बहन, पत्नी, बच्चों के नाम खरीदी गई ज्वाइंट प्रॉपर्टी जो आय के ज्ञात स्रोतों से खरीदी गई हो, बेनामी संपत्ति नहीं कहलाती है।
- जिस लेनदेन में एक ट्रस्टी और लाभार्थी शामिल हो। बेनामी संपत्ति नहीं कहलाती है।
- किसी विश्वासपात्र के नाम खरीदी गई प्रॉपर्टी। इसमें ट्रांजैक्शन किसी ट्रस्टी की तरफ से किया गया हो।
बेनामी लेनदेन में शामिल हैं:
- लेनदेन जो फर्जी नामों में किया जाता है।
- जहां व्यक्ति जो संपत्ति के मालिक है स्वामित्व से इनकार करते हैं।
मतलब, एक प्रॉपर्टी, जिसमें आपका नाम तो है, लेकिन आपने इस खर्च का जिक्र अपने इनकम टैक्स रिटर्न में नहीं किया है तो उसे भी बेनामी मान लिया जाएगा।
इसके अलावा, बेनामी तरीके से की जाने वाली लेनदेन चल या अचल, ठोस या अमूर्त यहां तक कि सोने और वित्तीय प्रतिभूतियों में हुई लेनदेन भी शामिल होगा।
बेनामी लेनदेन विधेयक के तहत प्रस्तावित सजा और जुर्माना:
बेनामी प्रॉपर्टी पाए जाने पर सरकार उसे जब्त कर सकती है। जो व्यक्ति दोषी पाया जाएगा उसे नए प्रावधान के तहत अधिकतम सात साल तक की अवधि के लिए सश्रम कारावास की सजा मिल सकती है। प्रॉपर्टी की बाजार कीमत पर 25 फीसदी जुर्माने का प्रावधान है। जो लोग जानबूझकर गलत सूचना देते हैं उन पर प्रॉपर्टी के बाजार मूल्य का 10 फीसदी तक जुर्माना भी देना पड़ सकता है।
साथ ही सरकार द्वारा अधिकृत अधिकारी को लगता है कि आपके कब्जे की प्रॉपर्टी बेनामी है तो वह आपको नोटिस जारी कर आपसे प्रॉपर्टी के कागजात तलब कर सकता है। इस इस नोटिस के तहत आपको 90 दिन के भीतर अपनी प्रॉपर्टी के कागजात अधिकारी को दिखाने होंगे।
आपको बता दें की सरकार ने भरोसा दिया है धार्मिक ट्रस्ट इस कानून के दायरे से बाहर रहेंगे।
देश में काले धन पर अंकुश लगाने के प्रयासों के बीच सरकार के इस कदम से काला धन छिपाने और टैक्स बचाने के लिए बेनामी संपत्ति खरीदने वालों के लिए आने वाला वक्त परेशानी भरा हो सकता है।