बिहार की राजधानी पटना ऐतिहासिक धरोहरों से समृद्ध है, लेकिन गंगा नदी के किनारे स्थित गोलाकार संरचना – गोलघर अपनी अनोखी बनावट और इतिहास के कारण सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इसका निर्माण एक विशेष उद्देश्य के तहत किया गया था, और आज यह पटना के प्रमुख पर्यटन स्थलों में गिना जाता है।
गोलघर (Golghar) का निर्माण – क्यों और कैसे हुआ?
1764 में बक्सर के युद्ध में जीत के बाद, ईस्ट इंडिया कंपनी को पूरे बंगाल प्रांत का शासन मिल गया था। लेकिन 1769 से 1773 के बीच बंगाल में भीषण अकाल पड़ा, जिसमें सरकारी आंकड़ों के अनुसार एक करोड़ से अधिक लोगों की जान चली गई। भुखमरी और त्राहिमाम के बीच ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए शासन करना एक चुनौती बन गया, और इस संकट से निपटने के लिए अनाज के भंडारण की आवश्यकता महसूस की गई।
गोलघर पर लगे शिलापट्ट के अनुसार, इस संरचना का निर्माण अकाल के प्रभाव को कम करने के लिए 20 जनवरी 1784 को शुरू किया गया था। यह आदेश तत्कालीन गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स द्वारा दिया गया था, जिन्होंने बंगाल प्रांत में एक विशाल अन्न भंडार बनाने का निर्देश दिया। इस संरचना को ब्रिटिश इंजीनियर कैप्टन जॉन गार्स्टिन ने डिज़ाइन किया था।
गोलघर को पटना में बनाने का निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि यह गंगा नदी के बिल्कुल करीब स्थित था। जलमार्ग के कारण यहां आसानी से अनाज लाया जा सकता था, और यह स्थान कंपनी के अधिकारियों के लिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि भारत में उनका प्रवेश इसी रास्ते से हुआ था।
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गोलघर (Golghar) की असफलता – “कैप्टन गार्स्टिन की मूर्खता”
ईस्ट इंडिया कंपनी ने महज दो वर्षों में गोलघर का निर्माण पूरा कर लिया, लेकिन इसे अनाज संग्रह के लिए उपयोगी बनाने में असफल रही।
शुरुआत में इसमें अनाज रखा गया, लेकिन कुछ ही समय में अनाज सड़ने लगा। बाद में यह पाया गया कि गोलघर के अंदर की परिस्थितियां अनाज भंडारण के अनुकूल नहीं थीं। ब्रिटिश इंजीनियर शायद भारतीय जलवायु और इसके प्रभाव का सही अनुमान नहीं लगा सके।
धीरे-धीरे यह संरचना एक बेकार भवन के रूप में देखी जाने लगी और इसे “कैप्टन गार्स्टिन की मूर्खता” कहा जाने लगा। इसके बाद, इसे अनाज भंडारण के लिए दोबारा कभी इस्तेमाल नहीं किया गया। वास्तव में, यह ब्रिटिश आर्किटेक्चर की एक असफल कृति बनकर रह गया।
गोलघर पर विद्वानों की राय
गोलघर के निर्माण के आठ साल बाद, 1794 में पटना आए अंग्रेज विद्वान थॉमस ट्वीनिंग ने अपने संस्मरण “ट्रेवेल्स इन इंडिया, ए हंड्रेड ईयर्स एगो” में इसका उल्लेख किया। वे लिखते हैं:
“पटना में मिस्टर ग्रिंडल के घर के पास मैंने एक विशाल, शंकु के आकार का अनाज भंडार देखा। इसका डिज़ाइन उपयोगिता को ध्यान में रखकर बनाया गया था, सुंदरता के लिए नहीं। फिर भी, इसकी अनोखी बनावट के कारण इसे सराहा जाता है। इसे आधे कटे हुए अंडे के आकार में बनाया गया था और यह सरकार के नेक इरादों (अकाल राहत के लिए अनाज भंडारण) की याद दिलाता है।”
आज़ाद भारत में गोलघर का महत्व
ब्रिटिश शासन के दौरान गोलघर का कभी कोई उपयोग नहीं हुआ, लेकिन आज यह पटना की पहचान बन चुका है।
जैसे दिल्ली के लिए इंडिया गेट, मुंबई के लिए गेटवे ऑफ इंडिया, आगरा के लिए ताजमहल, और हैदराबाद के लिए चारमीनार एक प्रतीक हैं, वैसे ही गोलघर, पटना का एक ऐतिहासिक प्रतीक बन चुका है।
आज, यह पटना के प्रमुख पर्यटन स्थलों में गिना जाता है, और लोग इसकी विशालता, अद्भुत वास्तुकला और दिलचस्प इतिहास को देखने के लिए यहां आते हैं। गोलघर, भले ही अपने मूल उद्देश्य में असफल रहा हो, लेकिन यह इतिहास, वास्तुकला और पटना की विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है।