भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य में एक विधानमंडल (Legislature) का प्रावधान किया गया है। किसी राज्य में एक सदन और किसी में दो का प्रावधान है। केवल सात राज्यों में विधान मंडल और विधान परिषद् दोनों का प्रावधान है।
दो सदन वाले विधानमंडल का उच्च सदन विधान परिषद् (Legislative Council) और निम्न सदन विधानसभा (Legislative Assembly) कहलाता है। विधानसभा का गठन वयस्क मतदान के आधार पर प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने गए जनता के प्रतिनिधियों से होता है। जैसे केंद्र में लोकसभा का महत्त्व राज्यसभा से अधिक है, वैसे ही प्रांत में विधानसभा (Legislative Assembly) का महत्त्व विधान परिषद् से अधिक है। भारतीय संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वह विधि-निर्माण करके किसी भी राज्य की विधान परिषद् को समाप्त कर सकती है। अथवा जिस राज्य में विधान परिषद् नहीं है वहाँ उसका निर्माण कर सकती है।
सात राज्यों में विधान मंडल और विधान परिषद् दोनों का प्रावधान है, वे राज्य हैं –
- आंध्र प्रदेश
- बिहार
- उत्तर प्रदेश
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- तेलंगाना
- जम्मू और कश्मीर.
इसके अलावा असम को भारत की संसद ने अपने स्वयं के विधान परिषद बनाने की मंजूरी दे दी है।
विधान परिषद् क्या है
विधान परिषद कुछ भारतीय राज्यों में लोकतंत्र की ऊपरी प्रतिनिधि सभा है। इसके सदस्य अप्रत्यक्ष चुनाव के द्वारा चुने जाते हैं। कुछ सदस्य राज्यपाल के द्वारा मनोनित किए जाते हैं। विधान परिषद विधान मंडल का अंग है। इसके सदस्यों का कार्यकाल छह वर्षों का होता है लेकिन प्रत्येक दो साल पर एक तिहाई सदस्य हट जाते हैं।
भारत में राज्य के विधान परिषद में राज्य के विधान सभा में सदस्यों की कुल संख्या की एक तिहाई और किसी भी कारणों से 40 सदस्य से कम सदस्य नहीं होते हैं। परिषद के लगभग एक तिहाई सदस्य विधान सभा के सदस्यों द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से चुने जाते हैं जो इसके सदस्य नहीं है। शेष सदस्य राज्यपाल द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला, सहयोग आन्दोलन और सामाजिक सेवा में उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों में से नियुक्त किए जाते है। विधान परिषदों को भंग नहीं किया जा सकता परन्तु उनके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष में सेवा निवृत्त होते हैं।
एमएलसी बनने हेतु योग्यताएं:
- भारत का नागरिक होना चाहिए।
- कम से कम 30 साल की आयु होनी चाहिए।
- मानसिक रूप से असमर्थ, व दिवालिया नहीं होना चाहिए।
इसके अतिरिक्त उस क्षेत्र (जहाँ से वह चुनाव लड़ रहा हो) की मतदाता सूची में उसका नाम भी होना आवश्यक है। समान समय में वह संसद का सदस्य नहीं होना चाहिए।
विधान परिषद् और विधानसभा की शक्तियाँ कहाँ-कहाँ बराबर हैं?
- साधारण विधेयकों को शुरू करना
- मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करना. आपको जानना चाहिए कि मंत्री विधानमंडल के किसी भी सदन के सदस्य हो सकते हैं
- राज्यपाल जो अध्यादेश जारी करते हैं, उनको accept/reject करना
- हर राज्य में कुछ संवैधानिक संस्थाएँ होती हैं जैसे राज्य वित्त आयोग, राज्य लोक सेवा आयोग आदि ….इन संस्थाओं के द्वारा जारी किए गए reports पर विचार करना
विधानसभा की शक्तियाँ विधान परिषद् से किन मामलों में ज्यादा है?
धन विधेयक केवल विधानसभा (Legislative Assembly) में ही आरम्भ किए जा सकते हैं। विधान परिषद् धन विधेयक में न तो संशोधन कर सकती है और न उसे ख़ारिज कर सकती है। हाँ भले वह यदि चाहे तो धन विधेयक को 14 दिनों तक रोक सकती है या 14 दिनों के भीतर इसमें संशोधन से सम्बंधित सिफारिश भेज सकती है। विधानसभा इन सिफारिशों को स्वीकार भी कर सकती है और खारिज भी। हर स्थिति में विधानसभा की राय ही अंतिम मानी जाती है।
वित्तीय विधेयक [अनुच्छेद 207 (1)] केवल विधानसभा में ही प्रस्तुत की जा सकता है। वैसे एक बार वित्तीय विधेयक प्रस्तुत हो गया तो दोनों सदनों की शक्तियाँ बराबर हो जाती है।
कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, यह तय करने का अधिकार सिर्फ विधानसभा के अध्यक्ष के पास है।
बजट को पारित करने के मामले में भी विधानसभा को परिषद् (Legislative Council) की तुलना में अधिक अधिकार प्राप्त हैं। वह विभिन्न मंत्रालयों द्वारा माँगे गए अनुदानों (grants) पर विचार करती है और उन्हें पारित भी करती है। विधान परिषद् उन पर बहस तो कर सकती है पर पारित करने का अधिकार उसे प्राप्त नहीं है।
यदि साधारण विधेयक की बात करें तो इस मामले में भी अंतिम शक्ति विधानसभा के ही पास है। यदि विधानसभा (Legislative Assembly) कोई विधेयक पारित कर दे तो विधानपरिषद उस विधेयक को अधिक से अधिक 4 महीने तक रोक सकती है – पहली बार 3 महीने और फिर दूसरी बार 1 महीना।
मंत्रिपरिषद विधानसभा के प्रति उत्तरदायी (collective responsible) होता है। विधानसभा अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा मंत्रिपरिषद को हटा भी सकती है। परन्तु विधानपरिषद के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं है।
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विधानसभा के सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते हैं पर विधान परिषद् (Legislative Council) के सदस्य इसमें भाग नहीं ले सकते।राज्यसभा के चुनाव में भी केवल विधानसभा के सदस्य ही भाग लेते हैं।
विधान परिषद् का सम्पूर्ण अस्तित्व विधानसभा के विवेक पर निर्भर करता है। यदि विधानसभा चाहे तो विधान परिषद को पूरी तरह से ख़त्म करने के लिए विशेष बहुमत से संकल्प पारित कर सकती है।
Feature Image Source – Deccan Chronicle