असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) का अंतिम मसौदा जारी होतें ही देश में भारतीय नागरिक बनाम घुसपैठिया की चर्चा जोरों पर है। NRC के मुताबिक असम के 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार 677 लोगों को वैध नागरिक माना गया है। वैध नागरिकता के लिए 3,29,91,384 लोगों ने आवेदन किया था, जिसमें 40,07,707 लोगों को अवैध माना गया है। NRC की रिपोर्ट के बाद देश के राजनीतिक गलियारों में भी सरगर्मी तेज़ है।
आखिर क्या है ये NRC? यह जानना जरूरी है।
What is NRC?
1955 के सिटिजनशिप एक्ट के तहत केंद्र सरकार पर देश में हर परिवार और व्यक्ति की जानकारी जुटाने की जिम्मेदारी है। सिटिजनशिप एक्ट 1955 के सेक्शन 14ए में 2004 में संशोधन किया गया था, जिसके तहत हर नागरिक के लिए अपने आप को नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस यानी एनआरसी में रजिस्टर्ड कराना अनिवार्य बनाया गया था।
NRC से जुड़ी मुख्य बातें
- NRC को पूरे देश में पहली और आखिरी बार 1951 में तैयार किया गया था। लेकिन इसके बाद इसे update नहीं किया गया था।
- NRC में भारतीय नागरिकों का लेखा-जोखा दर्ज होता है।
- असम इकलौता राज्य है जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू है।
- 2005 में केंद्र, राज्य और All Assam Students Union के बीच समझौते के बाद असम के नागरिकों की दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई।
- मौजूदा प्रकिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रही है।
- सुप्रीम कोर्ट ने करीब दो करोड़ दावों की जांच के बाद 31 December 2018 तक NRC को सुची जारी करने का निर्देश दिया था।
- कोर्ट ने जांच में करीब 38 लाख लोगों के दस्तावेज संदिग्ध पाए थे।
- एनआरसी की अंतिम सूची 31 दिसंबर तक प्रकाशित होगी गृह मंत्रालय ने घोषणा की कि असम में तैयार किए जा रहे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की अंतिम सूची 31 दिसंबर तक प्रकाशित की जाएगी।
- छूटे हुए लोग फिर से इसमें शामिल होने के लिए अप्लाई कर सकते हैं। इसके लिए उनके पास 30 अगस्त से 28 सितंबर तक समय है।
यहां जांच सकेंगे नाम
राज्य में सभी एनआरसी सेवा केंद्रों में अंतिम मसौदा उपलब्ध है, जहां लोग अपने नाम की जांच कर सकते हैं। इसके अलावा आवेदक एनआरसी की वेबसाइट पर भी इसे देख सकते हैं। लोग 24×7 टॉल फ्री नंबर असम के लिए 15107 और असम के बाहर के लिए 18003453762 पर फोन कर सकते हैं तथा अपना 21 अंकों का एप्लीकेशन रिसीप्ट नंबर बताकर जानकारी हासिल कर सकते हैं।
असम में ही क्यों है लागू किया गया है NRC
देश में असम इकलौता राज्य है जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू है। असम में सिटिजनशिप रजिस्टर देश में लागू नागरिकता कानून से अलग है। यहां असम समझौता 1985 से लागू है और इस समझौते के मुताबिक, 24 मार्च 1971 की आधी रात तक राज्य में प्रवेश करने वाले लोगों को भारतीय नागरिक माना जाएगा।
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) के मुताबिक, जिस व्यक्ति का सिटिजनशिप रजिस्टर में नहीं होता है उसे अवैध नागरिक माना जाता है्। इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था। इसमें यहां के हर गांव के हर घर में रहने वाले लोगों के नाम और संख्या दर्ज की गई है।
एनआरसी की रिपोर्ट से ही पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं है। आपको बता दें कि वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी जमीन असम में थी और लोगों का दोनों और से आना-जाना बंटवारे के बाद भी जारी रहा। इसके बाद 1951 में पहली बार एनआरसी के डाटा का अपटेड किया गया।
इसके बाद भी भारत में घुसपैठ लगातार जारी रही। असम में वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भारी संख्या में शरणार्थियों का पहुंचना जारी रहा और इससे राज्य की आबादी का स्वरूप बदलने लगा। 80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ (आसू) ने एक आंदोलन शुरू किया था। आसू के छह साल के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में असम समझौत पर हस्ताक्षर किए गए थे।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार, उसकी देखरेख में 2015 से जनगणना का काम शुरू किया गया। इस साल जनवरी में असम के सिटीजन रजिस्टर में 1.9 करोड़ लोगों के नाम दर्ज किए गए थे जबकि 3.29 आवेदकों ने आवेदन किया था।
असम समझौते के बाद असम गण परिषद के नेताओं ने राजनीतिक दल का गठन किया, जिसने राज्य में दो बार सरकार भी बनाई। वहीं 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1951 के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप को अपडेट करने का फैसला किया था। उन्होंने तय किया था कि असम में अवैध तरीके से भी दाखिल हो गए लोगों का नाम नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप में जोड़ा जाएगा लेकिन इसके बाद यह विवाद बहुत बढ़ गया और मामला कोर्ट तक पहुंच गया।