बढ़ती बेरोजगारी और जनसंख्या के बीच भारत में कुपोषण तेज़ी से पैर पसार रहा है। कुपोषण के बढ़ते मामलो ने देश के सामने एक गंभीर समस्या उत्पन्न कर दी है। यहां तक की विश्व बैंक ने इसकी तुलना ”ब्लेक डेथ” नामक महामारी से की है।
आइये जानते क्या है कुपोषण इससे बचने के क्या उपाय हो सकतें हैं
आहार में महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की कमी की देन है, कुपोषण। यदि हमारे आहार में सभी विटामिंस और खनिज लवण न हों, तो हम इसके शिकार हो सकते हैं। हॉस्पिटल में आनेवाले मरीजों में इनकी तादाद काफी ज्यादा होती है। समस्या यह भी है कि ज्यादातर मरीजों और उनके परिजनों को भी सही पोषण के बारे में बिल्कुल जानकारी नहीं होती है। ऐसे में जानकारी के अभाव में ये लंबे समय तक पोषक तत्वों से दूर रहते हैं, जिसके कारण उन्हें कई तरह के क्रॉनिक डिजीज भी हो जाते हैं। कुपोषण मतलब शरीर में प्रोटीन, ऊर्जा, विटामिंस, खनिज लवण आदि की कमी। आमतौर पर भारत में आयरन, आयोडिन, विटामिन ए, विटामिन बी, कैल्शियम, विटामिन डी आदि की कमी देखी जाती है।
वजन कम होना है प्रमुख लक्षण : कुपोषण के लक्षणों में वजन की कमी सबसे अहम है। जब शरीर का वजन तीन माह के अंदर 10 फीसदी से अधिक कम हो जाये, तो यह चिंता की बात है। वजन के सही अनुपात की जानकारी आपको बॉडी मास इंडेक्स (BMI) से पता चल सकती है। आप घर पर भी अपना बीएमआइ जान सकते हैं। इसके लिए आपको अपने वजन और हाइट का अनुपात निकालना होगा। कई मोबाइल एप और वेबसाइट भी ऑनलाइन बॉडी मास इंडेस की गणना करके देते हैं। एक स्वस्थ वयस्क का BMI सामान्यतः 18.5- 24.9 के बीच होता है. 17-18.5 के बीच की BMI वाले लोगा कुपोषण के बॉर्डर लाइन पर होते हैं, जबकि 16 से कम BMI होने का मतलब मरीज का कुपोषित होना है।
भारत की अधिकांश आबादी गांवों में रहती है। जहां उन्हें पोषण की सही जानकारी नहीं होती। इस कारण वे सही तरीके से भोजन नहीं ले पाते हैं। शरीर को पोषण मिलने का प्रमुख माध्यम भोजन ही होता है। हर आयु वर्ग में अपनी-अपनी कार्यशैली के अनुसार पोषण की अलग मात्रा की जरूरत होती है। लगातार कम मात्रा में भोजन लेने से कुपोषण की समस्या बढ़ जाती है।
स्वास्थ्य के नजरिये से देखा जाये, तो कुछ आहार खाने में तो स्वादिष्ट होते हैं, किंतु स्वास्थ्य के लिहाज से नहीं। शहरों में रहनेवाले युवा और कामकाजी लोग इस तरह का भोजन अधिक करते हैं, जो उनके पाचनतंत्र को खराब कर सकता है। बहुतायत में सेवन किये जानेवाले जंक फूड, फास्ट फूड व इसी तरह के अन्य खाद्य पदार्थ खाने में स्वादिष्ट होते हैं, इनमें पोषण नहीं होता, उलटा ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी होते हैं।
आर्थिक रूप से कमजोर लोग जानकारी अभाव में पोषक आहार कम लेते हैं। हमारे देश में कई ऐसे पोषक आहार हैं, जिनकी समझ लोगों में नहीं है, ऐसे आहार मार्केट में भी सस्ते में उपलब्ध हैं। जैसे कई तरह के साग, दलहन आदि. इनमें विटामिन ए और सी काफी मात्रा में होते हैं, जबकि दलहन फसल प्रोटीन के अच्छे श्रोत हैं। कई महिलाओं और बच्चों को कच्चा चावल, चाॅक और मुल्तानी मिट्टी आदि खाने की आदत होती है, जो पेट तो भर देता है, पर इससे पोषण नहीं मिलता, बल्कि ये उलटा नुकसान ही करता है।
नींद की कमी भी कुपोषण का कारण :
नींद की कमी से भी कुपोषण हो सकता है। दरअसल, नींद पूरी न होने से शरीर में वायु दोष में वृद्धि होती है और शरीर का मेटाबॉलिज्म गड़बड़ाने लगता है। इससेे अच्छा भोजन लेने पर भी शरीर उसका उपयोग नहीं कर पाता है। कुपोषित लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर हो जाती है। ऐसे में किसी भी प्रकार का संक्रमण उन्हें ज्यादा और जल्दी परेशान करता है। कमजोरी के कारण उनमें चिड़चिड़ापन एवं चक्कर आने के लक्षण दिखते हैं। नाखून आसानी से टूटने लगते हैं। कुपोषित महिलाओं का मासिक चक्र अनियमित हो जाता है या रुक जाता है। बच्चों की भी त्वचा और बाल रूखे तथा बेजान हो जाते हैं। वजन कम होना व पेट फूल जाना आदि लक्षण देखे जाते हैं। शारीरिक विकास भी रुक जाता है। यदि समय रहते इलाज न किया जाये, तो यह जानलेवा भी हो सकता है। नवजात हो या स्कूल जानेवाला बच्चा विकास के लिए पोषणयुक्त आहार बेहद जरूरी है।
चॉकलेट से मन न बहलाएं :
छोटे बच्चे को जब भूख लगती है, तो वह रोता है। ऐसे में मां-बाप को चाहिए कि उसके रोने के कारणों का पता लगाएं. सिर्फ चॉकलेट या बिस्कुट देकर उनका मन न बहलाएं। यदि भूख लगी हो, तो संपूर्ण पोषक आहार दें। आप घर पर ही कम खर्च में पोषणयुक्त आहार बना सकती हैं। बच्चों के खाने में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन एवं खनिज लवण जैसे पोषक तत्वों का होना बहुत जरूरी है। उन्हें अनाज, दाल, सलाद, सब्जी, साग, दूध, अंडा और मौसमी फल जरूर दें।
कुपोषित बच्चों को ठीक करने के लिए आहार ही सबसे प्रमुख उपाय है। इसके लिए सबसे पहले जरूरत होती है ऊर्जा की. इसलिए उसे उसके शरीर के वजन के हिसाब से औसतन 170-200 kcal/kg का आहार देना चाहिए। इसमें प्रोटीन की मात्रा 3-4 gm/kg होना चाहिए. शुरुआत में दूध आधारित तरल पदार्थ देना चाहिए। दूध पर आधारित फॉर्मूला एक लीटर साफ पानी में 90 ग्राम सूखा दूध का पाउडर, 50 ग्राम वेजिटेबल ऑयल एवं 70 ग्राम चीनी मिलाएं। 100 एमएल का यह घोल 100 kcal ऊर्जा और 3 ग्राम प्रोटीन प्रदान करता है। विटामिन एवं मिनरल्स के लिए मल्टीविटामिन की दवा देनी चाहिए। 60 एमजी एलीमेंटल आयरन और 100 एमजी फाॅलिक एसिड देना चाहिए। ORS भी बच्चों के लिए लाभकारी है।
शरीर में आयरन की कमी होना एक तरह का कुपोषण है। हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी है। आयरन फेफड़ो से शरीर के अन्य अंगों में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है। इसकी कमी का असर हमारे श्वसनतंत्र सहित अन्य अंगों पर पड़ता है।
इसकी कमी से बचने के लिए फल और सब्जियां विशेषकर हरी पत्तेदार सब्जियां, साबुत अनाज, कम वसायुक्त दूध एवं अन्य डेयरी उत्पाद, लीन मीट, मछली, अंडे, सूखे मेवे आदि का नियमित और संतुलित मात्रा में सेवन करें। इसके अलावा विटामिन-सी की पर्याप्त मात्रा लेनी चाहिए, जो शरीर को आयरन के अवशोषण में मदद करती है। गर्भावस्था में महिलाओं को आयरन की गोलियां भी लेना चाहिए। विटामिन ए की कमी को पूरा करने के लिए पीला फल जैसे पपीता, आम, कोहड़ा आदि लिया जा सकता है।
भारत सरकार की पहल :
भारत सरकार ने अंधेपन से निबटने के लिए नेशनल प्रोफाइलैक्सिस प्रोग्राम फॉर ब्लाइंडनेस की शुरुआत की, जो विटामिन ए की कमी से होनेवाले अंधेपन कर रोकथाम के लिए मददगार है। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य 6 महीने से लेकर 5 साल तक के छोटे बच्चों को विटामिन ए की कमी से बचाना है। इस कार्यक्रम की दो स्ट्रेटजी है।
1. विटामिन ए की कमी से बचाव : इसमें दो तरह की पहल की जाती है। एक लॉन्ग टर्म इंटरवेंशन, इसमें लोगों को विटामिन ए युक्त आहार, फल और सब्जियों का सेवन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जैसे कोहड़ा, गाजर, आम, संतरा, सभी तरह के अनाज, दाल, दूध, चीज, पनीर, दही, घी, अंडा एवं लीवर आदि। दूसरा शॉर्ट टर्म इंटरवेंशन इसमें 6-11 महीने के बच्चे को 100000 IU विटामिन ए का एक डोज, 1-5 साल के बच्चों को 200000IU हर छह माह पर दिया जाता है।
2. विटामिन ए की कमी का इलाज : इसके लिए एकल डोज 200000 IU की तुरंत दिया जाता है एवं 1-4 हफ्ते के बाद फिर से 200000IU का डोज दिया जाता है।
एनिमिया : कुपोषण की दूसरी स्थिति है एनीमिया। इससे लोगों को बचाने के लिए भारत सरकार ने नेशनल एनिमिया प्रोफाइलैक्सिस प्रोग्राम की शुरूआत 1972 में की थी। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य गर्भवती एवं दूध पिलाने वाली माताओं तथा छोटे बच्चों (प्रीस्कूल) को आयरन की कमी से बचाना है। कार्यक्रम की स्ट्रेटजी के अनुसार लोगों खासकर महिलाओं को आयरन युक्त आहार लेने के लिए बढ़ावा देना है। इसमें सरसों के साग, गेंधारी साग, गांठ गोभी, कच्चू पत्ता, चना साग, शलजम का साग, अनाज में गेहूं, मडुआ, ज्वार, बाजरा, अंकुरित दाल, गुड़, यदि संभव हो, तो मीट, लिवर, चिकेन, अंडा आदि को लेने के लिए बढ़ावा देना है।
गर्भवती एवं दूध पिलाने वाली माताओं को आयरन एवं फोलिक एसिड की एक गोली प्रतिदिन लेनी चाहिए, जिसमें 60 एमजी एलीमेंटल आयरन एवं 500 माइक्रोग्राम फोलिक एसिड हो, दूसरे तिमाही से 100 दिनों तक लेना चाहिए। 1-5 साल तक के छोटे बच्चों को 20 एमजी एलिमेंटल आयरन एवं 100 माइक्रोग्राम फोलिक एसिड 100 दिनों तक प्रत्येक साल लेना चाहिए।तीसरी स्थिति में आयोडिन की कमी को खत्म करने के लिए सरकार आयोडिन युक्त नमक का गरीबों तक पहुंचाना है। इसके लिए भारत सरकार ने नेशनल आयोडिन डेफिशियेंसी डिसऑर्डर कंट्रोल प्रोग्राम की शुरुआत 1992 में की और गरीबों तक आयोडिन युक्त नमक पहुंचाया।