आज पूरा देश आजादी की 74वीं वर्षगांठ मना रहा है। लोग तिरंगे को सलामी देकर आजादी के ज़श्न में डूबे हुए हैं। हर वर्ष 15 अगस्त आता है और महापुरुषों को श्रद्धांजलि दी जाती है। देशभक्ति गीत गाये जाते हैं। मिठाइयां बांटी जाती है और नेताओं के बड़े-बड़े कसीदों के साथ आजादी के पर्व को भारत में मनाया जाता है। और हमें लगता है कि हम आजाद लोकतंत्र के बाशिंदे हैं। पर क्या वाकई में हम आजाद हैं?
15 अगस्त को छोड़ दें तो साल के बाकी 364 दिन हम इसी जद्दोजहद में लगे होते हैं कि हमें आजादी मिल जाए बेरोजगारी से, गरीबी से, भेदभाव से लेकिन क्या 1947 के बाद से यह संभव हो पाया है। जबाब साफ है : नहीं!
बड़ी अच्छी कहावत है और प्रासंगिक भी है कि युवा बदलेगा तो देश बदलेगा। लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि भूखे पेट बेरोजगार युवा देश कैसे बदलेगा? देश की विकासगाथा में कैसे शामिल होगा?
आपको भारत के सबसे अधिक खनिज संपदा वाले राज्य झारखंड लिये चलते हैं, जहां छात्र दर-दर अपनी नौकरी के लिए गुहार लगा रहे हैं लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। जब जनता के नुमाइंदों के कानों पर जूं नहीं रेंगी, तो छात्रों ने न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया। लेकिन अफसोस आजादी के 74 साल बाद भी न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले को केवल इसलिए टाल दिया क्यूंकि न्यायालय को शोक सभा मनाना था, तो समझिए देश के हालात क्या हैं और देश कितना स्वतंत्र है।
चलिए आपको पूरा मामला समझाते हैं।
दरअसल वर्ष 2017 में झारखंड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा पंचायत सचिव निम्न वर्गीय लिपिक और आशु लिपिक के 3088 पदों के लिए विज्ञापन निकाला गया था। इसकी लिखित परीक्षा का परिणाम 23 फरवरी 2019 को जारी किया गया था। इसके बाद टाइपिंग टेस्ट और कंप्यूटर योग्यता की परीक्षा का आयोजन हुआ और परिणाम जारी कर शैक्षणिक प्रमाण पत्रों की जांच भी पूरी कर ली गई। आज दो वर्ष से भी अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन आयोग की ओर से अभी तक मेधा सूची जारी नहीं की गई है।
आपको बता दें कि रघुवर सरकार के कार्यकाल में पंचायत सचिवों की नियुक्ति होनी थी, लेकिन रघुवर सरकार चली गई और आज प्रदेश में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार है। लेकिन पंचायत सचिव अभ्यर्थियों (PS Recruitment Jharkhand) के हालात जस के तस हैं। यहां एक बात का जिक्र करना बेहद आवश्यक है कि हेमंत सोरेन ने चुनावों के दौरान यह वादा किया था कि जब वे सत्ता में आएंगे, तब पंचायत सचिवों की नियुक्ति का रास्ता साफ करेंगे। हेमंत सरकार को बने 6 महीनें से ऊपर होने को है, लेकिन लगता नहीं है कि हेमंत सरकार इसके लिए गंभीर हैं। पंचायत सचिव अभ्यर्थियों ने जब भी हेमंत सरकार से गुहार लगाई तो सरकार ने मामले को न्यायलय में होने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया। जिस नियोजन नीति का हवाला देकर सरकार अपना पल्ला झाड़ रही है, उसी नियोजन नीति के तहत अन्य एजेंसियों ने संविदा आधारित बहालियां इसी वर्ष में की हैं। अभ्यर्थी अभी तक पूरे हिम्मत के साथ हेमंत सरकार को उनका वादा याद कराने की नाकाम सी कोशिश प्रतिदिन कर रहे हैं।
क्या है पूरा मामला?
आपको थोड़ा न्यायालय में मामले को लेकर भी जानकारी दे देते हैं। सोनी कुमारी vs झारखण्ड स्टेट (Soni Kumari vs Jharkhand State) केस पर फैसला आना है। जानकारी के अनुसार कोर्ट में सुनवाई की प्रक्रिया पूरी हो गई है और अब इसमें फैसला आना है।
आपको बता दें कि सोनी कुमारी (Soni Kumari vs Jharkhand State) ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिका में सरकार की उस नीति को चुनौती दी गई है, जिसके तहत गैर अनुसूचित जिले के लोगों को अनुसूचित जिले की नौकरी के लिए आवेदन नहीं देने का प्रावधान किया गया है। वहीं, अनुसूचित जिलों के लोगों को गैर अनुसूचित जिले की नौकरियों के लिए आवेदन देने का प्रावधान रखा गया है। सरकार ने 24 जिलों में से 13 को अनुसूचित और 11 को गैर अनुसूचित जिले में शामिल किया है। अदालत को बताया कि शिक्षक नियुक्ति के लिए प्रार्थी सोनी कुमारी ने अनुसूचित जिले के लिए आवेदन दिया था, लेकिन उनका आवेदन यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया गया कि वह गैर अनुसूचित जिले की रहने वाली हैं। अनुसूचित जिले की नौकरी के लिए वह आवेदन नहीं दे सकती हैं। इसी मामले को लेकर हाईकोर्ट में फैसला आना बाकी है ।
पंचायत सचिव अभ्यर्थियों (Panchayat Sachiv abhyarti Jharkhand) के अनुसार पूर्व महाधिवक्ता ने साफ शब्दों में कहा था कि पंचायत सचिव नियुक्ति पर कोई स्टे नहीं लगाया गया है। बड़ा सवाल यह है कि जब कोर्ट को कोई दिक्कत नहीं है तब सरकार क्यों पंचायत सचिवों की नियुक्ति नहीं कर रही है।
क्या हेमंत सरकार को इतना भी समझ नहीं आता है कि को युवा नौकरी के चौखट पर पहुंचकर भी बेरोजगार है। वह किस मानसिक परिस्थिति से गुजर रहा है। भारत में एक परिवार के लिए सरकारी नौकरी उस ब्रह्मास्त्र की तरह होता जिससे एक पिता के बूढ़ी आंखों को खुशी नसीब होती है एक भाई अपनी बहन सपने को पूरा कर उसका अच्छे से विवाह कर पाता है। एक मां जिसने अपनी पूरी जिंदगी टपकती छत के बीच गुजारकर अपने बच्चे को इसलिए पढ़ाया ताकि वो एक दिन नौकरी पाकर वो इस घर की तंगी को दूर कर पाएगा। एक मध्यम वर्गीय लड़की जो रूढ़िवादी पुरुष प्रधान समाज में आर्थिक रुप से स्वाबलंबी बनकर अपने सपनों को पंख दे पाती है।
हेमंत सोरेन जी अब भी वक़्त है संभल जाईए युवा के दर्द को समझिए क्यूंकि आप जानते ही युवा जोश है जिसमें समुंदर की रवानी है जागेगा तो तख्तों ताज पलट देगा। फिर आपको केवल कहावत याद आएगी कि वक़्त से चुका इंसान और मौसम से चुका किसान दोनों खत्म हो जाते है। इसलिए आजादी के 74 वें वर्षगांठ पर युवाओं को आत्म बल दीजिए तभी नए झारखंड की नीव रख पाइएगा।