रतीन्द्र नाथ / पटना: ‘बुलेट’ के प्रति एक नौजवान की दीवानगी से जहां उसके स्वजन-परिजन व मित्र-बंधु हतप्रभ हैं, वहीं इस युवक के कारण आज की तारीख में उसके यहां लक्ष्मी की वर्षा हो रही है। कौन है वह तरूण और क्या है ‘बुलेट’ का राज, इससे चारचश्म कराती रतीन्द्र नाथ की यह रिपोर्ट।
चौंकिए मत! यहां जिस ‘बुलेट’ की चर्चा हो रही है, उसे रखना न तो कहीं से गैरकानूनी है और न ही उसके चलने पर किसी की जान जा सकती है। बेशक यह ‘बुलेट’ जब सड़क पर दौड़ती है, तो बिना हॉर्न बजाए, उसकी ‘धड़-धड़’ आवाज सुनकर ही अन्य गाडि़यां उसे साइड तुरंत दे देती हैं। जी हां, अभी ‘बुलेट’ मोटरसाइकिल तथा उसे नए सिरे से इस सूबे में पुनर्स्थापित करने वाले कद्दावर शख्सियत के स्वामी प्रतीक सिंह के बखान यहां किए जा रहे हैं। प्रतीक पटना की पॉश पाटलिपुत्र कॉलोनी स्थित ‘अंबे मोटर्स’ के अधिपति हैं। ‘अंबे मोटर्स’ में बुलेट मोटरसाइकिल की बिक्री होती है। इसके अलावे इसका ‘सर्विस सेंटर’ भी वहां से कुछ फासले पर है। ‘बुलेट’ के पार्ट-पुरजे भी वहां मिलते हैं। गौरतलब है कि मुल्क की मशहूर ‘रॉयल एनफील्ड कंपनी’ ‘बुलेट’ मोटरसाइकिल का निर्माण करती है। ‘आइसर मोटर्स’ की ‘सिस्टर कंसर्न’ है ‘रॉयल एनफील्ड’। वैसे तो ‘अंबे मोटर्स’ को छोड़ राजधानी पटना में ‘बुलेट’ मोटरसाइकिल के और दो केंद्र हैं, लेकिन प्रतीक सिंह के ‘अंबे मोटर्स’ का कोई जोड़ नहीं। ‘अंबे मोटर्स’ महीने में तकरीबन 200 मोटरसाइकिल बेच देता है।
अब सवाल उठता है कि बीए पास प्रतीक ने मोटरसाइकिल का ‘शोरूम’ स्थापित करने का फैसला क्यों लिया? कपड़ा व्यवसाय से ‘टू व्हीलर’ की दुनिया में किस तरह इस शख्स ने छलांग लगाई? प्रतीक का मन रोज-ब-रोज इसमें रमता कैसे गया? इस बाबत ‘इनफोलिज्म’ ने अपनी छानबीन की, तो पाया कि प्रतीक के पिता और चाचा यूं तो सरकारी नौकरी में रहे हैं जरूर, पर व्यवसाय से उनका जुड़ाव गजब का था। प्रतीक सिंह के पिता भीम कुमार सिंह ‘ईश्वरीय उच्च विद्यालय’ बसंत, गरखा में सहायक हैं। प्रतीक की मां तारामुनि देवी कुदरवाधा पंचायत की मुखिया रह चुकी हैं। जाहिर है सियासत से भी इस कुनबे का रिश्ता है। इस संबंध को परवान चढ़ाने के वास्ते ही प्रतीक के पिता भीम सिंह ने अपनी बिटिया का ब्याह महाराजगंज के पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के साहबजादे अभिलेष सिंह से रचवाया है।
बहरहाल, जिन दिनों प्रतीक सातवीं जमात के छात्र थे, उसी वक्त उन्हें गरखा स्थित बजाज के शोरूम में जाने का मौका लगभग हर शाम मिलता था। उस शोरूम की बुनियाद उनके पिता ने रखी थी। अपने पिता भीम सिंह की मोटरसाइकिल से ही प्रतीक बजाज शोरूम जाया करते थे। नतीजतन, वे उम्र के तेरहवें पड़ाव पर पहुंचते ही ‘बुलेट’ मोटरसाइकिल के मुरीद होते गए। बकौल प्रतीक सिंह ‘बुलेट’ शान की, आन की, प्रतिष्ठा की सवारी है। प्रतीक के मुताबिक ‘बुलेट’ पर चढ़ना मर्दानगी को दर्शाता है। हालांकि प्रतीक ‘बुलेट’ का गुणगान करने में पिले हुए थे, तो ‘इनफोलिज्म’ ने सीधे उनसे पूछा कि ‘बुलेट’ के विषय में पब्लिक इमेज यह है कि उसकी स्टीयरिंग गुंडे थामते हैं, अपराधी, लफंगे किस्म के लोग, शोहदे उसको हांकते हैं। पोर्टल के इस प्रश्न पर हंसते हुए प्रतीक ने जवाब दिया कि ‘बुलेट’ की छवि फिलहाल बदल गई है और प्रोफेशनल इंसान यानी कि शिक्षक, प्रोफेसर, बैंक में अपनी सेवा देने वाले, व्यवसायी इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं। प्रतीक सिंह ने यह खुलासा भी किया कि प्रदेश में महागठबंधन की हुकूमत के दौरान तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री व लालू यादव के बड़े राजकुमार तेजप्रताप यादव खुद अपने कमांडो के साथ उनके शोरूम पधारे थे तथा चेक द्वारा भुगतान कर ‘बुलेट’ खरीदा था।
घड़ी की सुइयां टिक-टिक कर आगे बढ़ती रहीं। वक्त पंख लगाकर उड़ता रहा। पिता से प्रेरणा लेकर प्रतीक ने मॉटर्न की टॉफी के लिए कभी प्रसिद्ध रहे मढ़ौरा में बजाज का शोरूम खोल डाला। सनद रहे कि बजाज कंपनी केवल दो पहिया एवं तिपहिया गाड़ी ही बनाती है यानी कि मोटरसाइकिल व ऑटो। व्यवसाय में प्रतीक का मन यहीं नहीं भरा। मढ़ौरा की मिठास में और चीनी घोलने के मकसद से प्रतीक ने ‘आइडिया टेलीकॉम’ का डिस्ट्रीब्यूटरशिप भी ले लिया। इसके पश्चात् इस मेहनती युवक ने वहीं ‘तृप्ति रेस्टूरेंट’ की ओपनिंग की। इस मुतल्लिक ‘इनफोलिज्म’ ने यह दरियाफ्रत की कि ‘तृप्ति’ क्या आपके घर के किसी बेटी, बहन या मां-चाची आदि का नाम है, तो उनका उत्तर था कि नहीं, सिर्फ दिल की संतुष्टि के मद्देनजर ही ‘तृप्ति’ नामकरण करना पड़ा।
प्रतीक की तरक्की की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। कपड़ा व्यवसाय के क्षेत्र में भी प्रतीक ने अपना पांव फैलाया। छपरा के हथुआ मार्केट में उन्होंने साड़ी का शोरूम ‘बहुरानी’ को जन्म दिया। व्यापार का ग्राफ ऊंचा जाए, इसके लिए कोलकाता का रूख प्रतीक ने किया। वहां उन्होंने बहुमंजिली इमारतों के निर्माण हेतु ‘श्याम डेवलपर’ कंस्ट्रक्शन कंपनी का निबंधन करवाकर दमदम हवाईअड्डा के निकट अपार्टमेंट की आधारशिला रखी। सन् 2011 के दौरान व्यवसाय के फील्ड में तीसरी आंख रखने वाले इस लड़के ने ढाकापट्टी जो कि कोलकाता की नाक है, वहां साड़ी के शोरूम को खड़ा कर यह साबित कर डाला कि आदमी के हौसले बुलंद हों, तो किसी भी क्षेत्र में वह अपनी कामयाबी का झंडा गाड़ सकता है। कोलकाता की साड़ी दुकान अलग ही जेब गर्म कर रही है।
कथा के भीतर कथा है। कोलकाता में साड़ी शोरूम की स्थापना कर प्रतीक पुनः अपने गृह जिला छपरा वापस हो गए। छपरा शहर में होंडा मोटरसाइकिल के शोरूम ‘अंबे मोटर्स’ की पैदाइश ने इनके हौसले को भारी गति प्रदान की। चूंकि ‘रॉयल एनफील्ड’ की ‘बुलेट’ मोटरसाइकिल से प्रतीक को बेइंतिहा मुहब्बत थी, इसलिए मई 2016 में ‘अंबे मोटर्स’ पाटलिपुत्र कॉलोनी, पटना को उन्होंने अस्तित्व में लाया। ‘बुलेट’ के दस सर्वोच्च विक्रेताओं में एक ‘अंबे मोटर्स’ के मालिक प्रतीक भी हैं। प्रतीक की शादी दो साल पहले कोलकाता शहर की बाशिंदा रीतिका से हुई थी। रीतिका सीएस अंतिम वर्ष की छात्र हैं।
यह नहीं कि प्रतीक हरदम पैसा कमाने, धन अर्जित करने में ही लगे रहते हैं। उन्होंने विभिन्न ज्वलंत मुद्दों को लेकर बनारस, रांची, पटना, छपरा, मुजफ्रफरपुर, सासाराम, राजगीर समेत नेपाल की राजधानी काठमांडू के साथ पोखरन, चितवन वगैरह में सैकड़ों बुलेट मोटरसाइकिल के संग यात्रएं भी की हैं। उनकी टीम में हमेशा युवकों ने जान फूंकी है। दहेज-विरोधी अभियान, स्वच्छ भारत अभियान उनकी लिस्ट में एक नंबर पर है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भले ही 21 जनवरी, 2018 को दहेज-विरोधी एवं बाल विवाह विरोधी मानव श्रृंखला बनवाई थी, पर इस नौजवान ने अपनी पलटन की अगुआई करते हुए दिसंबर 2017 में पटना से सटे बख्तियारपुर में दहेज-विरोधी सफर तय किया था। इस दहेज विरोधी जत्थे को पटना के ट्राफिक एसपी पीके दास ने हरी झंडी दिखाई थी। इस यात्र के क्रम में युवकों ने अपनी देह पर ‘दहेज विरोधी स्टिकर’ भी लगा रखा था। ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को प्रतीक ने 26 जनवरी के दिन मुजफ्रफरपुर में बाइक से चक्कर लगाकर दिखाया था। इसका लाइव टेलीकास्ट भी हुआ था। शीघ्र ही नेपाल में भी प्रतीक अपनी जमात को मोटरसाइकिल द्वारा लेकर जाने वाले हैं ताकि उपरोक्त अभियानों को बल मिले। उधर प्रतीक के भइया पंकज सिंह ने सीवान और गोपालगंज में ‘बिक्रम टेम्पू’ के शोरूम की कमान संभाल रखी है।
यकीनन, प्रतीक को गतिशील जिन्दगी व्यतीत करने का शौक शुरू से ही है। उनका मानना है कि नाचती हुई लड़की, दौड़ता हुआ घोड़ा, धारा के विपरीत तैरने वाला व्यक्ति तथा ‘बुलेट’ की सवारी से सामाजिक विषयों की मशाल जलाने वाला इंसान ही अमर है और अमर रहता है।