भारतीय हिन्दु समाज में देवी पूजा में बलि प्रथा बेहद खास मानी जाती है। बलि में पशु को पूजा करके उसका सर धड से काटकर अलग दिया जाता है। यह सामान्य रूप से बलि प्रथा में होता है।लेकिन हम आज आपको एक ऐसी बलि प्रथा के बारे में बताएँगे जो बलि की विचित्र और अनोखी प्रथा है।
यह प्रथा बिहार के मुंडेश्वरी मंदिर की है, जो बिहार के सबसे प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है।यह मंदिर बिहार के कैमूर ज़िले के भगवानपुर अंचल में पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊँचाई पर स्थित है।यह मंदिर भारत की सुंदर मंदिरों में से एक है। मंदिर का वास्तुशिल्प अनूठा है। प्राचीन तांत्रिक यंत्र, श्री यंत्र के समान मंदिर का बाहरी आवरण है। इसमें 44 कोण हैं, जैसे आदिगुरु शंकराचार्य ने सौन्दर्य-लहरी में जिस श्री यंत्र का वर्णन किया है।
नवरात्र के दौरान यहां बकरे की बलि देने की प्रथा है। दूर-दूर से लोग इस मंदिर में बलि देने आते हैं, लेकिन माता के चमत्कार के चलते बिना एक बूंद खून बहे बली की विधि पूरी हो जाती है।इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि माता नहीं चाहती हैं कि उनके लिए खून बहे और किसी जानवर की जान जाए। बलि के लिए लाए गए बकरे को पुजारी देवी मां के सामने खड़ा कर देता है। पुजारी पहले मां के चरणों में अक्षत चढ़ाता है, फिर उसे बकरे पर फेंकता है। अक्षत पड़ते ही बकरा बेहोश हो जाता है। जब बकरा वापस होश में आता है को उसका संकल्प करवा दिया जाता है और उसे भक्त को लौटा दिया जाता हैं।
कहा जाता है कि यहां माता ने अत्याचारी असुर मुंड का वध किया था। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार माता भगवती ने इसी जगह अत्याचारी असुर मुंड का वध किया था। इसी से देवी का नाम मुंडेश्वरी पड़ा। मुंडेश्वरी मंदिर पंवरा पहाड़ी पर स्थित है। श्रद्धालुओं में मान्यता है कि मां मुंडेश्वरी से सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूरी करती हैं। यहां शारदीय और चैत्र नवरात्र के दौरान श्रद्धालुओं की भारी भीड़ एकत्र होती है।
यह मंदिर विश्व के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इतना ही नहीं मुंडेश्वरी देवी मंदिर बिहार का सबसे पुराना मंदिर है। भगवान शिव और शक्ति को समर्पित इस मंदिर को विश्व का ऐसा सबसे पुराना मंदिर माना जाता है। जिसमें अभी भी पूजा हो रही है।