साभार- जनचौक
NEW DELHI: दुनियाभर के इतिहास में लियोनार्दो द विंची से ज़्यादा बहुमुखी प्रतिभा वाली शख़्सियत का उल्लेख नहीं मिलता है। वह एक साथ वैज्ञानिक, संगीतकार, लेखक, मूर्तिकार, पेंटर, समाजशास्त्री यानी सब कुछ थे। उस ज़माने में विज्ञान आधारित ज्ञान का उतना विस्तार भी नहीं हुआ था, मगर विंची अपने दौर की हर प्रतिभा में बेजोड़ थे। ठीक है कि उन्हें सिर्फ़ पढ़े-लिखे लोग ही जानते हैं और वो भी इसलिए कि उन्होंने दुनिया को ‘मोनालिसा’ जैसी सार्वकालिक और सभी भावों की समग्रता वाली मूर्ति दी है। अगर हम लियो की तुलना किसी भारतीय से करना चाहें, तो सामने रवीन्द्रनाथ टैगोर आते हैं, जो पेंटर, मूर्तिकार, संगीतकार, गायक और भारत की तरफ़ से नोबल पुरुस्कार पाने वाले एकमात्र साहित्यकार भी हैं।
खुद को हर विद्या में बताता है पारंगत
लेकिन अगर हमारी-आपकी जानकारी लियो से शुरू होकर टैगोर तक ख़त्म हो जाती है, तो हम शायद मूढ़मती ठहराये जा सकते हैं, क्योंकि शायद तब हमें उस शख़्स के बारे में भले ही जानकारी हो, लेकिन उसकी बहुमुखी प्रतिभा के बारे में रत्तीभर जानकारी नहीं है कि वह सिर्फ़ धर्मपाल, आसाराम आदि की तरह एक बाबा ही नहीं है, उसकी प्रतिभा टैगोर की प्रतिभा से टकराती, छिटकाती, हहराती, लहराती और कालजयी प्रतिभा है। वह एक साथ स्पीरिचुअल गुरु (अध्यात्मिक गुरु), राइटर (लेखक), म्युज़िशियन (संगीतकार), सिंगर (गायक), डायरेक्टर (निदेशक), फ़ेमिनिस्ट (नारीवादी), साइन्टिस्ट (वैज्ञानिक), यूथ आइकन (नौजवानों के प्रतीक पुरुष) ओराटोरिकल स्किल्स (भाषण कला), लिटरेरी पर्सन (साहित्यकार), सुपर्ब मेरिट (अद्भुत प्रतिभा), स्पोर्टमैन (खिलाड़ी), न्यूट्रिशनिस्ट (पोषणविद्), सोशल रिफॉर्मर (सामाज सुधारक), लव ऑफ एडवेंचर (साहसी कार्य प्रेमी), एंपेरर ऑफ मेलोडीज़ (स्वर सम्राट) सब कुछ है। अगर आप हज़ारों साल की अपनी भारतीय संस्कृति और परंपरा पर इतरा रहे हैं, तो आपको स्वीकार करना होगा राम रहीम भारतीय संस्कृति के एकमात्र समग्र प्रतीक हैं। उल्लेखनीय है कि ऊपर गिनायी गयीं बाबा की ये प्रतिभायें उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर गिनायी गयी हैं। आप जैसे ही वेबसाइट को ओपन करते हैं, एक सुरमय संगीत के बीच ये विशेषतायें ग्राफ़िक्स के ज़रिये एक-एक कर आपको अभिभूत करती जाती हैं।
बड़े-बड़े खद्दरधारी करते हैं इंतजार
लेकिन डेरा सच्चा सौदा के राम रहीम की प्रतिभायें उनकी बनायी अपनी ही वेबसाइट की दुनियां में जितनी फ़्लैश होती हैं, उससे कहीं ज़्यादा उनकी बनायी उनकी वेबसाइट के बाहर की ऐसी दुनिया में भी कही सुनी जाती हैं, जिस पर उनका ज़्यादा वश नहीं है। लेकिन इतना वश तो है ही कि वो कोर्ट में पेशी भी कोर्ट की तरह नहीं, बल्कि अपनी तरह से देते हैं। आपको भले ही अपने क्षेत्र के मुखिया, पार्षद, विधायक, सांसद या मंत्री जी से मुलाक़ात करने के लिए घंटों इंतज़ार करना पड़ता हो, लेकिन आपके इन तमाम ‘आम प्रतिनिधियों’ की राम-रहीम से मुलाक़ात तो दूर की बात कांग्रेस और बीजेपी के कद्दावर नेताओं को भी राम रहीम से मुलाक़ात के लिए अप्वाइंटमेंट लेना पड़ता है और अगर अप्वाइंटमेंट मिल भी जाय, तो संभव है कि बाबा की कृपा न हो, तो घंटों इंतज़ार तक करना पड़ता है। कहते हैं कि कुछ सालों पूर्व बीजेपी की नेता उमा भारती से नाराज़ बाबा ने उमा को दो घंटे तक इंतज़ार करवाया था।
दिल्ली से सटे राज्यों के निकटवर्ती इलाक़ों के बड़े-बड़े नेताओं के कार्यालय, बाबा के चरणों में लोट रहे नेताओं से सजे हैं। बाबा का दावा है कि दुनियाभर में फ़ैले उनके भारतीय अनुयायियों की संख्या पांच करोड़ है और ये पांच करोड़ लोग उधर का रुख़ कर लें, जिधर चलने के बाबा के इशारे मिलें। यही वह चमत्कार है, जिसके आगोश में ‘भ्रष्टाचार के विरोध के साथ सत्ता का रुख करने वाली’ बीजेपी है। और ‘धर्मनिर्पेक्षता की अलंबरदार’ कांग्रेस भी है। पांच करोड़ मत मायने रखते हैं। बाबा की कृपा पहले ‘घोटालों की पार्टी’ क़रार दी गयी कांग्रेस पर थी, अब ‘हिन्दू राष्ट्र बनाने की क़सम खाने वाली’ पार्टी बीजेपी पर है। इससे इस बात का संकेत मिलता है कि बाबा की कृपा, भविष्य की बनने-बिगड़ने वाली सियासत को अच्छी तरह पहचानती है। बाबा अपने संरक्षण और आने वाली सत्तारूढ़ पार्टियों के बीच के समीकरण के बड़े उस्ताद हैं। उन्हें राजनीति का तुष्टीकरण भी अच्छा लगता है और उन्हें सियासत के किसी तिकड़म से भी कोई परहेज़ नहीं है।
अटल के जमाने में आया था मामला सामने
2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यालय में एक गुमनाम पत्र आया। इस पत्र में राम रहीम पर अपनी ही एक साध्वी के साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया गया था। उस पत्र को हरियाणा और पंजाब हाईकोर्ट भेज दिया गया। डेरा सच्चा सौदा की तरफ़ से आशंका जतायी गयी कि इस गुमनाम पत्र को कुरुक्षेत्र के खानपुर कोलियां गांव के रणजीत सिंह ने ही अपनी बहन से लिखवाया था। यहां यह ज़िक्र करना ज़रूरी है कि रणजीत सिंह की बहन डेरा सच्चा सौदा में साध्वी थी और पत्र लिखे जाने के ठीक पहले वह आश्रम छोड़ चुकी थी। इससे पहले स्वयं रणजीत सिंह आश्रम की प्रबंधन समिति के सदस्य थे। आस-पास में इस बात की चर्चा ज़ोरों पर थी कि रणजीत सिंह राम रहीम की पोल खोलेंगे, लेकिन 10 जुलाई 2002 को ही रणजीत सिंह की हत्या हो गयी। एक स्टिंग ऑपरेशन में राम रहीम के ड्राइवर ने बताया था कि रणजीत सिंह को बहुत समझाया बुझाया गया था, बाद में धमकी भी दी गयी, लेकिन वह अड़ा रहा, लिहाज़ा उसकी जान तो जानी ही थी।
कई लोगों की हो चुकी हैं हत्याएं
दूसरा आरोप एक पत्रकार की हत्या का है। बाबा की पोल जब सिरसा के ही एक पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने खोलनी शुरू की, तो लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ की ईंट बिना ख़ौफ़ के ढहा दी गयी। उल्लेखनीय है कि छत्रपति इसके पहले डेरा के मैनेजर भी थे। चार ऑक्टूबर 2002 को छत्रपति को गोली मार दी गयी और लगभग पौने दो महीने ज़िंदगी से जंग करते हुए पत्रकार ने इक्कीस नवंबर 2002 को दम तोड़ दिया। पत्रकार के बेटे ने अगले ही साल राम रहीम पर हाईकोर्ट में अपने पिता की हत्या का आरोप लगाते हुए एक याचिका दायर की, लेकिन राम रहीम की ओर से सुप्रीम कोर्ट में उस याचिका के सिलसिले में इन्कवायरी पर रोक लगाने की गुहार लगायी गयी। आख़िरकार एक साल बाद 2004 में उस गुहार को खारिज कर दिया गया और सीबीआई की विशेष अदालत को यह मामला सौंप दिया गया।
400 लोगों को नपुंसक बनाने का आरोप
बाबा पर यह आरोप भी है कि उन्होंने एक साथ लगभग 400 लोगों को नपुंसक बना दिया था। यह आरोप उनके ही साथ काम कर रहे एक साधु हंसराज चौहान ने लगाया था और इसे लेकर 2012 में हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गयी। याद कीजिए 2016 में कॉमेडियन कीकू शारदा की गिरफ़्तारी। कीकू का दोष सिर्फ़ इतना था कि उसने राम रहीम की नक़ल उतारी थी। नक़ल तो प्रधानमंत्रियों तक की उतारी जाती रही है। मगर आरोप है कि कीकू की गिरफ़्तारी के पीछे राम रहीम का दबाव था।
बाबा को कोर्ट में पेशी के लिए अब तक चार बार तलब किया गया है, लेकिन उन्होंने तीन बार अपनी डिजिटल पेशी ही दी, ख़ुद मौजूद नहीं रहे। बाबा को जब 2004 में सीबीआई ने आरोपी बनाया, तो लाखों की संख्या में भक्त सड़कों पर उतर गये और शक्ति प्रदर्शन करके जांच को प्रभावित करने की कोशिश की। जुलाई 2007 में जब सीबीआई ने मामले की जांच कर उपर्युक्त तीनों मामले में राम रहीम को आरोपी बनाते हुए पूरी रिपोर्ट हाईकोर्ट के सामने रख दी। न्यायालय ने 31 अगस्त 2007 तक राम रहीम को अदालत के सामने उपस्थित होने को कहा। इसकी प्रतिक्रिया में मामले की सुनवाई करने वाले जज को पत्र के ज़रिये धमकी दे दी गयी। आख़िरकार जज तक कोभी सुरक्षा की मांग करनी पड़ी थी।
तंत्र पर भारी धार्मिक रसूख
यह भारतीय लोकतंत्र का धार्मिक रसूख है। यह रसूख किसी बाबा पर प्रशासनिक-न्यायिक हाथ डालने से पहले हज़ार बार सोचवाता है। यह भ्रम नहीं पाला जाना चाहिए कि सियासत सिर्फ़ सियासतदानों के बल पर चलती है, सच तो यही है कि ये सियासतदान सही मायने में सिर्फ़ कॉर्पोरेट, जाति, संप्रदाय या धर्म से नहीं बल्कि इन बाबाओं और मौलानाओं के सामने भी सर झुकाकर अपनी रफ़्तार पकड़ती है। सर झुकाने की अदा को सिर्फ़ वोट बैंक की गंध चाहिए, लेकिन जहां स्पर्श भी कहे कि यहां कुछ ठोस वोट है, तो फिर सर झुकता ही नहीं, पैरों में लोट जाता है। आख़िर लोकतंत्र के किस दौर में हम जी रहे हैं? शायद उस दौर में, जिसका सुझाव राजनीति शास्त्र के पश्चिमी पंडित मैकियावेली यथार्थवादी राजनीति सिखाते हुए नेताओं से कहते हैं-जनता को आसमान के सपने दिखाओ और ख़ुद ज़मीन का ऐश भोगो। मेकियावेली की यह सीख अब वस्तुओं से लेकर धर्म के कारोबारियों तक के लिए उतना ही सच है।
(उपेंद्र चौधरी विभिन्न चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं। और आजकल दिल्ली में रहकर लेखन के साथ ही डाक्यूमेंट्री बनाने का काम करते हैं।)