लोकसभा चुनाव की तारीखों के एलान होते ही देश में आचार संहिता लागु हो गई। देश में जब भी चुनाव होतें हैं तब चुनाव की तारीख की घोषणा होने से लेकर चुनाव के परिणाम आने तक आचार संहिता लागु रहती है। राज्यों में चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के कर्मचारी बन जाते हैं। वह आयोग द्वारा दिए गये दिशा-निर्देश पर कार्य करते हैं। कई लोगों के जहन में यह सवाल जरूर उठता है कि आखिर ये आचार संहिता है क्या और इस दौरान कौन से नियम सख्ती से लागू किए जाते हैं।
क्या है आचार संहिता ? What is Code of Conduct?
आचार संहिता का मतलब है चुनाव आयोग के निर्देश जिनका पालन चुनाव खत्म होने तक हर पार्टी और उसके उम्मीदवार को करना होता है। दरअसल ये वो दिशा-निर्देश हैं, जिन्हें सभी राजनीतिक पार्टियों को मानना होता है। इनका मकसद चुनाव प्रचार अभियान को निष्पक्ष एवं साफ-सुथरा बनाना और सत्ताधारी राजनीतिक दलों को गलत फायदा उठाने से रोकना है। अगर कोई उम्मीदवार इन नियमों का पालन नहीं करता है तो चुनाव आयोग उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकता है, उसे चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है, उम्मीदवार के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज हो सकती है और दोषी पाए जाने पर उसे जेल भी जाना पड़ सकता है।
राज्यों में चुनाव की तारीखों के एलान के साथ ही वहाँ चुनाव आचार संहिता भी लागू हो जाती हैं। चुनाव आचार संहिता के लागू होते ही प्रदेश सरकार और प्रशासन पर कई अंकुश लग जाते है। आदर्श आचार संहिता को राजनीतिक दलों और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिये आचरण एवं व्यवहार का पैरामीटर माना जाता है। सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के कर्मचारी बन जाते हैं। वे आयोग के मातहत रहकर उसके दिशा-निर्देश पर काम करेते हैं। मुख्यमंत्री या मंत्री अब न तो कोई घोषणा कर सकतें हैं, न शिलान्यास, लोकार्पण या भूमिपूजन। सरकारी खर्च से ऐसा कोई भी आयोजन नहीं किया जा सकता है, जिससे किसी भी दल विशेष को लाभ पहुँचता हो।
बिंदुओं में आचार संहिता (Model Code of Conduct)
सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए निर्देश
- चुनाव की तारीख का ऐलान होते ही यह लागू हो जाती है और नतीजे आने तक जारी रहती है।
- किसी भी दल द्वारा कोई ऐसा कार्य नही किया जाना चाहिए जिससे जातियों और धार्मिक या भाषाई समुदायों के मध्य मतभेद उत्पन्न हो
- धार्मिक स्थानों का उपयोग चुनाव प्रचार के मंच के रूप में नहीं किया जाना चाहिए
- राजनीतिक दलों की आलोचना कार्यक्रम व नीतियों तक सीमित हो, न ही व्यक्तिगत
- मतदाता को अपनी पार्टी की और आकर्षित करनें के लिए भ्रष्ट आचरण का उपयोग न करें, जैसे-रिश्वत देना, मतदाताओं को परेशान करना आदि
- किसी की अनुमति के बिना उसकी दीवार, भूमि का उपयोग न करें
- किसी दल की सभा या जुलूस में बाधा न डालें
- राजनीतिक दल ऐसी कोई भी अपील जारी नहीं करेंगे, जिससे किसी की धार्मिक या जातीय भावनाएं आहत होती हो
- सभाओ के आयोजन के स्थान व समय की पूर्व सूचना पुलिस अधिकारियों को दी जाए
- दल या अभ्यर्थी पहले ही सुनिश्चित कर ले, कि जिस स्थान का चुनाव उनके द्वारा किया गया है, वहॉं निषेधाज्ञा लागू न हो
- सभा स्थल में लाउडस्पीकर के उपयोग की अनुमति लें।
- रैली का समय, आरंभ होने का स्थान, मार्ग और समाप्ति का समय निर्धारित कर सूचना पुलिस को दें
- रैली का आयोजन ऐसा हो, जिससे यातायात प्रभावित न हो
- राजनीतिक दलों का एक ही दिन, एक ही रास्ते से रैली निकालने का प्रस्ताव हो तो समय को लेकर पहले -बात कर लें
- रैली सड़क के दायीं ओर से निकाला जाए
- अधिकृत कार्यकर्ताओं को बिल्ले या पहचान पत्र दें
- मतदाताओं को दी जाने वाली पर्ची सादे कागज पर हो और उसमें प्रतीक चिह्न, अभ्यर्थी या दल का नाम न हो
- मतदान के दिन और इसके 24 घंटे पहले किसी को शराब वितरित न की जाए
- मतदान के दिन वाहन चलाने पर उसका परमिट अवश्य प्राप्त कर लें
सत्ताधारी पार्टियों के लिए निर्देश
- मंत्रियों को सरकारी दौरों को पार्टी के प्रचार के साथ नहीं जोड़ना चाहिए, पार्टी के प्रचार के दौरान वह सरकारी मशीनरी तथा कर्मचारियों का उपयोग नहीं कर सकते
- सरकारी विमान व गाड़ियों का उपयोग पार्टी के प्रचार में नहीं कर सकते
- सभा स्थल या हैलीपैड बनाने के लिए किसी मैदान पर सत्तादल का एकाधिकार नहीं होगा, दूसरे दलों को भी उसी नियम और शर्तो के अंतर्गत यह स्थान उपलब्ध होगा, जिस नियम और शर्त से सत्तादल को दिया जाएगा
- विश्रामगृह, डाक-बंगले, सरकारी आवासों या अन्य सरकारी आवासों पर भी सत्तादल का एकाधिकार नहीं होगा । सभी दलों को निर्धारित शर्तो पर आवंटित होगा परन्तु कोई भी राजनीतिक दल इसका उपयोग चुनाव प्रचार के लिए नहीं कर सकता
- सरकारी धन से कोई विज्ञापन समाचार पत्रों या टीवी चैनलों पर नहीं दिया जाएगा
- मंत्रियों के शासकीय भ्रमण पर उस स्थिति में गार्ड लगाई जाएगी जब वे सर्किट हाउस में ठहरे हों।
- कैबिनेट की बैठक नहीं करेंगे।
- स्थानांतरण तथा पदस्थापना के प्रकरण आयोग का पूर्व अनुमोदन ज़रूरी।
आपको बता दें कि आदर्श आचार संहिता किसी कानून के तहत नहीं बनी है। यह सभी राजनीतिक दलों की सहमति से बनी और विकसित हुई है। सबसे पहले 1960 में केरल विधानसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता के तहत बताया गया कि क्या करें और क्या न करें।
1962 के लोकसभा आम चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने इस संहिता को सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों में वितरित किया। इसके बाद 1967 के लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में पहली बार राज्य सरकारों से आग्रह किया गया कि वे राजनीतिक दलों से इसका अनुपालन करने को कहें और कमोबेश ऐसा हुआ भी। इसके बाद से लगभग सभी चुनावों में आदर्श आचार संहिता का पालन कमोबेश होता रहा है।
गौरतलब यह भी है कि चुनाव आयोग समय-समय पर आदर्श आचार संहिता को लेकर राजनीतिक दलों से चर्चा करता रहता है, ताकि इसमें सुधार की प्रक्रिया बराबर चलती रहे।
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