दशहरा का त्यौहार सम्पूर्ण भारत में उत्साह और धार्मिक निष्ठा के साथ मनाया जाता है। अच्छाई की बुराई पर जीत का त्यौहार विजयदशमी प्रत्येक वर्ष नवरात्री की समाप्ति के बाद दसवें दिन मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह आश्विन माह के दसवें दिन शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। इस वर्ष दशहरा 19 अक्तूबर को है। विजयादशमी के रोज भारत में रावण दहन की परंपरा है।
इस दिन भगवान रामचंद्र चौदह वर्ष का वनवास भोगकर तथा रावण का वध कर अयोध्या पहुँचे थे। इसलिए भी इस पर्व को ‘विजयादशमी’ कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय ‘विजय’ नामक मुहूर्त होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। इसलिए भी इसे विजयादशमी कहते हैं।
दशहरा शब्द की उत्पत्ति
दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द ‘दश- हर’ से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ दस बुराइयों से छुटकारा पाना है। दशहरा उत्सव, भगवान् श्रीराम का अपनी अपहृत पत्नी को रावण पर जीत प्राप्त कर छुड़ाने के उपलक्ष्य में तथा अच्छाई की बुराई पर विजय, के प्रतीकात्मक रूप में मनाया जाता है।
दशहरा उत्सव दुर्गोत्सव के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि उसी दिन एक और राक्षस जिसे महिषासुर बुलाया गया था दसवीं दिन पर माता दुर्गा द्वारा मारा गया था।
क्यों जलाया जाता है रावण का पुतला
दशहरें में रावण के दस सिर इन दस पापों के सूचक माने जाते है – काम, क्रोध, लोभ, मोह, हिंसा, आलस्य, झूठ, अहंकार, मद और चोरी। इन सभी पापों से हम किसी ना किसी रूप में मुक्ति चाहते है और इस आस में हर साल रावण का पुतला बड़े से बड़ा बना कर जलाते है कि हमारी सारी बुराइयाँ भी इस पुतले के साथ अग्नि में स्वाह हो जाये।
दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक
दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो शुभ तिथयां हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा। इसी दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे।
दशहरे पर होता है शमी के वृक्ष का पूजन
हिंदू धर्म में विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष का पूजन करते आए हैं। खासकर क्षत्रियों में इस पूजन का महत्व ज्यादा है। महाभारत के युद्ध में पांडवों ने इसी वृक्ष के ऊपर अपने हथियार छुपाए थे और बाद में उन्हें कौरवों से जीत प्राप्त हुई थी। इस दिन शाम को वृक्ष का पूजन करने से आरोग्य व धन की प्राप्ति होती है। दशहरे पर शमी के वृक्ष की पूजन परंपरा हमारे यहां प्राचीन समय से चली आ रही है।