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Nostalgic 90 : नाइंटीज वालों की कहानी – पापा को बोल देंगे…

Infolism Desk
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Nostalgic 90 :  सुबह हो चुकी थी, पापा की मोटरबाइक की आवाज कानों तक पहुंच रही थी, बाहर निकलने से पहले पापा जब तक बाइक स्टार्ट करके दो तीन बार जोर से एक्सीलेटर न घुमा ले उनको चैन ही नहीं आता था। पापा जैसे ही बाहर निकले मम्मी झल्लाते हुए कमरें में आई और कहने लगी मोनू  उठो जल्दी नहीं तो स्कूल के लिए देर हो जाओगे।

मैं अब भी सोने की एक्टिंग कर रहा था। और सोये-सोये स्कूल नहीं जाने के बहाने ढूंढ रहा था। क्यूंकि आज शनिवार है तो टीवी पर 11.30 बजे शक्तिमान आता है। खैर जब मां के एक दो बार बोलने पर भी मैं नही उठा तो इस बार मां ने जबरदस्ती चादर खींच ली और बड़बड़ाने लगी तुम्हारा रोज का नाटक है पढ़ना चाहता ही नहीं है तुम। बड़ा होकर दिल्ली पंजाब जाएगा कमाने। हम तो सोचे थे जिंदगी में इतना दुख देखे हैं ई बच्चा लोग पढ़ लिख लेगा तो मेरा जिंदगी सफल हो जाएगा। पर लगता है मेरे जीवन में कष्ट ही लिखा हुआ है। माँ को इमोशनल होता देख हमने बेड छोड़ना ही बेहतर समझा।

अब मन में स्कूल नहीं जाने का कोई बहाना भी बनाने का मन नहीं कर रहा था। मैं अब नहा धोकर तैयार हो गया था। छोटा भाई पहले से ही तैयार था और धीरे धीरे रोटी दूध खा रहा था। इतने में माँ मेरे लिए भी नाश्ता लेकर आ गई। मैंने भी चुपचाप नाश्ता किया और बुझे मन से स्कूल के लिए निकल पड़ा। स्कूल ज्यादा दूर नहीं था तो दोनो भाई पैदल ही जाते रहे थे। मैं आगे-आगे चल रहा था और छोटा भाई पीछे-पीछे कभी रास्ते में पड़े पत्थरों को ठोकर मारते तो कभी किसी पौधे के पत्ते को नोचते हुये मस्ती मैं आ रहा था।

अब हम स्कूल पहुंच गए थे। मन में केवल एक ही बात चल रही थी कैसे भी करके आज कम से कम 11.35 तक घर पहुंच जाना है। क्योंकि आज शक्तिमान की किलविष से लड़ाई होने आली थी। अब क्लास शुरू हो गई थी । पहला क्लास गणित का था और उसके बाद हिंदी फिर विज्ञान और सबसे अंतिम में संस्कृत का क्लास था। मैं भगवान से बार-बार मन ही मन कह रहा था आज किसी भी तरह संस्कृत वाला क्लास कैंसिल हो जाए। तब में जल्दी घर पहुंच जाऊंगा। समय बीत रहा था तीन विषयों की कक्षा समाप्त हो चुकी थी। अब संस्कृत की कक्षा की बारी थी। स्कूल की दीदी ने टन-टन करके चार घंटि बजा दी थी । 11:10 हो गए थे अब तक संस्कृत के आचार्य जी नहीं आये थे।

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मैं मन ही मन खुश हो रहा था। लेकिन अचानक से मेरी खुशी काफूर हो गई। आचार्य जी आ गए । अब क्या करें बुझे मन से आचार्य जी की बाते सुननी पड़ रही थी। पर ज्यादा ध्यान छुट्टी के लिए बजने वाली घंटी पर ही था। अब वो क्षण आ चुका था छुट्टी वाली घंटी बजी और मन में खुशी की लहर दौड़ गई । बिना आचार्य जी को देखे जल्दी-जल्दी किताबों को बस्ते में डालें जा रहे थे। फिर अचानक से मास्टर जी चिल्लाये बहुत जल्दी है घर जाने की चुपचाप बैठो और जो बोल रहे है लिखो। अब क्या करते मन मसोस कर लिखना पड़ रहा था। अब पांच मिनट बिट चुके थे आचार्य जी ने कहा अब सोमवार को पढ़ाएंगे जाओ छुट्टी। फिर क्या था जल्दी से मैने बस्ता पीठ पर बाँधा और सरपट दौड़ लगा दी।

स्कूल के गेट से बाहर निकला तो देखा की छोटा भाई बाहर मेरा इंतज़ार कर रहा है। भाई को देखते ही मैन कहा चलो जल्दी नही तो शक्तिमान खत्म हो जाएगा। दोनो भाई दौड़ते हुए बाहर पहुंचे और बिना जूता खोले बैग को पटकते हुए सीधे टीवी रूम में पहुंच गए। जैसे टीवी ऑन किया शक्तिमान सामने था और वो पांच महत्वपूर्ण बाते बात रहा था। अब मन में केवल संस्कृत वाले आचार्य जी पर गुस्सा आ रहा था।

टीवी चालू ही छोड़कर मैं आंगन में आ चुका था और छोटे भाई को आवाज़ लगाये और बोले की चलो बैट बॉल खेलते हैं। फिर एक बांस की फट्टी ली और प्लस्टिक के बॉल के साथ खेलने को तैयार हो गए। छोटा भाई पहले बैटिंग की जिद करने लगा। अगर उसे बैटिंग नहीं देते तो वो खेलता हो नहीं। फिर मैंने बॉल फैंकी ही थी माँ चिल्लाते हुए बाहर आई और कहने लगी एकदम आवारा है दोनो।
चलो खाने नहीं तो पापा को बोल देंगे। पापा को बोल देंगे से बड़ा डर हमारे लिए कुछ नहीं था

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